अजीब दास्ताँ है ये, कहाँ शुरू कहाँ ख़तम
ये मंज़िले हैं कौनसी, न वो समझ सके न हम
ये मंज़िले हैं कौनसी, न वो समझ सके न हम
ये रोशनी के साथ क्यों, धुआँ उठा चिराग से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं के जग पडी हूँ ख्वाब से
ये ख्वाब देखती हूँ मैं के जग पडी हूँ ख्वाब से
मुबारके तुम्हे के तुम किसी के नूर हो गए
किसी के इतने पास हो के सब से दूर हो गए
किसी के इतने पास हो के सब से दूर हो गए
किसी का प्यार लेके तुम नया जहां बसाओगे
ये शाम जब भी आयेगी, तुम हमको याद आओगे
ये शाम जब भी आयेगी, तुम हमको याद आओगे
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