हरि: ॐ नमस्ते गणपतये |
त्ववेम प्रत्यक्षं तत्वमसि | त्ववेम केवलं कर्तासि |
त्ववेम केवलं धर्तासि | त्ववेम केवलं हर्तासि |
त्ववेम केवलं खल्विदं ब्रह्मासि | त्वं साक्षांदात्मासि नित्यं || १ ||
ऋतं वच्मि | सत्यं वच्मि || २ ||
अव त्वं माम् | अव वक्तारम् अव श्रोताराम्
अव दातारम् | अव धातारम् |
अवानूचानमव शिष्यम् | अव पश्र्चात्तात |
अवपुरस्तात् | अवोत्तरात्तात |
अव दक्षिणात्तात् | अव चोर्ध्वात्तात् | अवाधरत्तात् |
सर्वतो मां पाहि पाहि समंतात् || ३||
त्वं वाड्.मयस्त्वं चिन्मय: | त्वमानंदमयस्तत्वं ब्रह्मामय: |
त्व सच्चिदनंदाव्दितीयोsसि | त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि |
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोsसि || ४ ||
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते | सर्वं जगदिदं तत्वत्तस्तिष्ठति |
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति |
सर्वं जनदिदं त्वयि प्रत्येति त्वं भूमिरापोsनलोsनिलो नभ: |
त्वं चर्वारिवाक पदानि || ५ ||
त्वं गुणत्रयातीत त्वं देहत्रयातीत: | त्वं कालत्रयातीत: |
त्वं मूलाधारस्थितोsसि नित्यम् | त्वं शक्तित्रयात्मका: | त्वां योगिनोध्यायन्ति नित्यं त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णूस्त्वं
रुद्रस्त्वमिंद्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमस्त्वं ब्रह्माभूर्वुव: स्वरोम् || ६ ||
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरम् | अनुस्वार: परतर: |
अर्धेन्दुलसितं | तारेण ऋध्दं | एतत्तवमनुस्वरुपम् |
गकार: पूर्वरुपम् | अकारो मध्यमरुपम् | अनुस्वारश्चांत्यरुपम् |
बिंदुरुत्तररुपम् | नाद: संधानम् | सँहिता संधि: | सैषा गणेशविद्या |
गणक ऋषि | निवृद्गायत्रीन्छद: | गणपतीदेंवता: ॐ गं गणपतये नम: || ७ ||
एकदंताय विघ्नहे वक्रतुण्डाय धीमही | तन्नो दंति प्रचोदयात् || ८ ||
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमंकुशधारिणाम् | रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम् |
रक्तं लंबोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम् | रक्तगंधानुलिप्तांगं रक्तपुष्पै: सुपूजितम |
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम् | आविर्भूतं चसृष्ट् यादौ प्रकृते: पुरुषात्परम् |
एवं ध्यायंति यो नित्यं स योगी योगिनां वर: || ९ |||
नमो व्रातपतये नमो गणपतये नम:
प्रमथपतये नमस्ते अस्तु लंबोदरायैकदंताय
विघ्ननाशिने शिवसुताय श्री वरदमूर्तये नम: || १० ||
(पुढिल स्तोत्र फक्त आवर्तन करतानाच म्हणावे,
म्हंजे, पुऩ्हा सुरतात करण्याआधी खालील ओळी म्हणाव्यात)
ॐ भद्रं कर्णेभि: श्रुणुयाम देवा: भद्रं पश्येमाक्षभिर्जजत्रा: |
स्थिरैरंगैस्तुष्टुरांसस्तमनूभि: | व्यमेश देवहितं यदायु: || १ || ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृध्दाश्रवा | स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा: ||
स्वस्तिनस्तार्क्ष्योअरिष्ठनेमि: | स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु || २ ||
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